गुरु पूर्णिमा

ॐ क्रिया बाबाजी नम ॐ

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुर्गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री क्रिया बाबाजी गुरवे नमः॥
गुरु ब्रह्मा हैं, गुरु विष्णु हैं, गुरुदेव महेश्वर हैं। गुरु वस्तुतः साक्षात्  पर ब्रह्म है; ऐसे गुरु श्री क्रिया बाबाजी को मेरा नमन।

ॐ अखण्डमण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरम्।
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः॥
अखण्ड (अविभाज्य) एक समग्र जो सर्वत्र विद्यमान है, चर (जीवित) और अचर (निर्जीव) दोनों रूपों में व्याप्त है। पूज्य गुरु को नमस्कार, जिन्होंने ऐसे अस्तित्व के चरण देखे हैं (वह जो स्वयं के साथ एक हैं)।

गुरु पूर्णिमा

आप सभी को गुरु पूर्णिमा की बहुत बहुत बधाई। गुरु पूर्णिमा सभी साधकों के लिए एक विशेष दिन होता है जब हम अपने गुरु को आदर पूर्वक याद करते हैं और उनकी कृपा और मार्गदर्शन का आभार व्यक्त करते हैं। गुरु पूर्णिमा के दिन हम अपने गुरुओं के प्रति आदर व्यक्त करते हैं और उन्हें विशेष उपहार देते हैं। यह दिन हमारे लिए एक समरस वातावरण बनाता है, जहाँ हम अपने गुरुओं से संबंधित कथाओं, भजनों और प्रवचनों का आनंद लेते हैं। कई स्थानों पर, छात्रों और गुरुओं की मिलन भी होती है और सम्मान की जाती है। इस दिन को गुरु पूर्णिमा का व्रत रखकर भी मान्यता दी जाती है, जिसमें छात्र या उनके परिवार के सदस्यों को गुरुओं के प्रति विशेष आदर और पूजा करनी होती है। गुरु हमारे जीवन का आदर्श होते हैं। आइए हम सभी गुरु पूर्णिमा के इस पवित्र अवसर का सम्मान करें, अपने गुरुओं का आभार व्यक्त करें और उनके द्वारा दिए गए मार्ग पर चलने का संकल्प लें। इस पवित्र दिन को हमारे जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा बनाएं और गुरु शिष्य परंपरा को सदैव जीवंत रखें।

गुरु पूर्णिमा आषाढ़ मास की पूर्णिमा को मनायी जाती है। इस दिन गुरु पूजा की विधि होती है। यह वर्षा ऋतु का आरंभ होता है और चार महीने तक साधु-संत ज्ञान की गंगा बहाते हैं। इन महीनों में मौसम सबसे उपयुक्त होता है। इस दिन भक्ति के साथ ज्ञान, शांति, भक्ति और योग शक्ति प्राप्त होती है। गुरु को अंधकार के ज्ञानांजन से मुक्त करने वाला कहा जाता है। इस दिन कृष्ण व्यास का जन्मदिन भी होता है, जो वेद व्यास के रूप में जाने जाते हैं। गुरु की कृपा से ईश्वर का दर्शन होता है और उनके बिना कुछ भी संभव नहीं होता।

गुरु पूर्णिमा का इतिहास हमारी संस्कृति में बहुत पुराना है। इस दिन को सनातन धर्म में महत्वपूर्ण माना जाता है। गुरु पूर्णिमा अपनी महानता के कारण प्रसिद्ध है, क्योंकि इस दिन हम अपने गुरुओं के प्रति आदर व्यक्त करते हैं और उनके संदेशों को ध्यान में रखते हैं।

गुरु शब्द का अर्थ हमारे जीवन में गहरा महत्व है। इस शब्द का अर्थ है "उसका जो अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है।" गुरु हमारे जीवन का मार्गदर्शन करते हैं और हमें सही मार्ग प्रदान करते हैं। विभिन्न संस्कृतियों में भी गुरु का महत्व बताया गया है। हिंदू संस्कृति में गुरु ब्रह्मा, विष्णु और शिव के रूप में दिखाए जाते हैं। 

पूर्णिमा के दिन चंद्रमा पूर्ण रूप में दिखाई देता है। इस दिन की खासता यही है कि चंद्रमा हमेशा के लिए बढ़ कर दिखाई देता है और उसकी प्रकाशता हमें प्रभावित करती है। इस दिन पूर्णिमा के चंद्रमा की प्रकाशता और चमक हमें गुरु पूर्णिमा के पावन माहौल में खींचती है। यह संकेत करता है कि गुरु पूर्णिमा का दिन गुरुओं के प्रकाशता और ज्ञान के प्रकाश का प्रतीक है।

महावतार क्रिया बाबाजी: दिव्य गुरु

महावतार बाबाजी एक ऐसे पूर्ण सिद्ध पुरुष हैं जो अद्वैत विद्या, सच्चिदानंद और आध्यात्मिक सिद्धि की उच्चतम अवस्था में स्थित हैं। महावतार शब्द का अर्थ होता हैं 'महान अवतार' जो उनके विशेष स्थान को दर्शाता हैं। उन्हें हिन्दू धर्म एवं आध्यात्मिक परंपरा में एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। उन्होंने अपने जीवन के माध्यम से एक प्राकृतिक और आध्यात्मिक संदेश दिया है, जिसके प्रभाव से लाखों लोगों की जिंदगी में सकारात्मक परिवर्तन हुआ है। 

मार्शल गोविंदन सच्चिदानन्द के अनुसार, बाबाजी यह जानकारी योगी एस.ए.ए. रामैय्या और वी.टी. नीलकंठन को 1953 में दी थी कि बाबाजी के माता पिता ने उनका नाम नागराज (नागों का राजा) रखा था। उनका जन्म 30 नवम्बर 203 को पारंगीपेट्टई, तमिलनाडु में हुआ था।

उन्होंने दुनिया को एक महान योग पद्धति - क्रिया योग (Kriya Yoga) दिया। यह पद्धति आत्मानुभूति, शांति और सुख की प्राप्ति के लिए एक अद्वितीय मार्ग है। यह अभ्यास सदियों से चल रहा है और लोगों को आत्मीय और मानसिक विकास की ओर आकर्षित कर रहा है। यह आध्यात्मिक उन्नति के लिए एक अत्यंत प्रभावशाली मार्ग है। इसके अभ्यास से क्रिया योग साधक मन, शरीर को आत्मा से एकीकृत करते हैं और उन्हें आध्यात्मिक उच्चताओं तक पहुंचाते हैं।

महावतार बाबाजी को सनातन धर्म के लिए एक पवित्र गुरु हैं जो स्वयं भगवान शिव के अवतार भी माने जाते हैं। उनकी उपस्थिति आध्यात्मिक संदेश को आपत्तियों और संकटों से लड़ने की शक्ति प्रदान करती हैं। महावतार बाबाजी की उपस्थिति के बारे में कहीं से भी अद्भुत और रहस्यमयी गाथाएँ सुनी जाती हैं। अनुमान लगाया जाता है कि उनकी आयु अस्तित्व के बावजूद बहुत लम्बी है और वे अब तक इस जगत में अपनी उपस्थिति बनाए रखते हैं। यह भी कहा जाता है कि वे अनेक आध्यात्मिक गुरुओं और महापुरुषों को प्रशिक्षित करते हैं और उनके जीवन में अपने अद्भुत आध्यात्मिक ज्ञान को साझा करते हैं।

महावतार बाबाजी का सन्देश और उनकी आध्यात्मिक उपलब्धियों ने उन्हें एक लोकप्रिय आध्यात्मिक गुरु बना दिया हैं। उन्होंने क्रिया योग को  बहुत सी महान विभूतियों के माध्यम से लोगों तक पहुंचाया और उन्हें आध्यात्मिक उन्नति का अनुभव करने का अवसर दिया। उनका संदेश सादगी, अनन्यता और सत्यता की ओर प्रेरित करता हैं। उन्हें योग, ध्यान और मानव उन्नति के क्षेत्र में एक प्रेरणास्रोत के रूप में पहचाना जाता है। 

महावतार बाबाजी का जन्म संक्षेप में एक किंवदन्ती लगता है। विश्वास है कि महावतार बाबाजी ने अपने जीवन के दौरान अनेक युगों में अपना अद्भुत धार्मिक जीवन लोगों के आध्यात्मिक विकास के लिए समर्पित किया है। वे अद्वितीय शक्तियों और ज्ञान के संग्रहशाली स्रोत हैं, जो कि वे अपने चुनिन्दा शिष्यों के साथ साझा करते हैं।

वटविटपसमीपे भूमिभागेनिषण्णं, सकलमुनिजनानां ज्ञानदातारमारात्।
त्रिभुवनगुरुमीशं दक्षिणामूर्तिदेवं जनन मरण दुखच्छेद दक्षं नमामि॥11॥

चित्रं वटतरोर्मूले वृद्धाः शिष्या गुरुर्युवा।
गुरोस्तु मौनं व्याख्यानं शिष्यास्तु छिन्नसंशयाः॥12॥

(श्रीदक्षिणामूर्ति स्तोत्रम् श्लोक 11, 12)  

जो वटवृक्ष के समीप भूमि भाग पर स्थित है, निकट बैठे हुए समस्त मुनिजनों को ज्ञान प्रदान कर रहे हैं, जन्म-मरण के दुःख को विनाश करने में दक्ष हैं, त्रुभुवन के गुरु और ईश हैं, उन भगवान् दक्षिणामूर्ति को मैं नमस्कार करता हूँ।  

आश्चर्य तो यह है कि उस वटवृक्ष के नीचे सभी शिष्य वृद्ध हैं और गुरु युवा हैं। साथ ही गुरु का व्याख्यान भी मौन भाषा में है, किंतु उसी से शिष्यों के संशय नष्ट हो रहे हैं।  

(माना जाता है कि इस स्तोत्र में श्रीमद् आदिं शंकराचार्यजी ने अपने क्रिया दीक्षा गुरु श्री महावतार बाबाजी को ही भगवान् दक्षिणामूर्ति अर्थात् दक्षिण भारत में प्रकट हुए दिव्य गुरु के रूप में वर्णित किया है जो कि एक सांकेतिक वर्णन है।)

क्रिया योग एक उन्नत योग प्रक्रिया है जो दिव्य अभ्यास द्वारा आत्मा के संयम और ज्ञान को संवर्धित करती है। यह योग प्रक्रिया मानव के मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक विकास को प्रोत्साहित करती है। महावतार बाबाजी के द्वारा प्रदर्शित क्रिया योग उनके शिष्यों के बाहरी और आंतरिक जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाता है। यह योग उन्हें आध्यात्मिक ऊर्जा के साथ जुड़ने और अद्वितीय चेतना के संपर्क में आने की सामर्थ्य प्रदान करता है।

महावतार बाबाजी एक ऐसे आध्यात्मिक गुरु हैं जिन्होंने क्रिया योग का उपहार देकर आध्यात्मिक जगत का मार्ग प्रशस्त किया है। उनका योग अभ्यास सदियों से आत्म-सम्यक्ता, प्रभुत्व और स्वयंसेवा के माध्यम से लोगों को प्रेरित कर रहा है। हमें गर्व होना चाहिए कि हमारी आध्यात्मिक परंपराओं में एक ऐसा महान गुरु उपस्थित है, जिसने हमें आत्मिक उन्नति के पथ का मार्गदर्शन किया है। उनकी आध्यात्मिकता और संदेश धार्मिक सहजता, एकांतता, और प्रेम की ऊर्जा से भरी है। वे सभी धर्मों के प्रशंसकों के लिए एक ब्रह्मग्यानी और आध्यात्मिक मार्गदर्शक की भूमिका निभाते हैं। क्रिया योग एक हिन्दू को और अच्छा हिन्दू बनाता है। एक मुसलमान को और अच्छा मुसलमान बनाता है। एक ईसाई को और अच्छा ईसाई बनाता है।

महावतार बाबाजी की आपकी जीवन प्रेरणा का उदाहरण लेकर हम उनके धार्मिक उपदेशों का अनुसरण कर सकते हैं। उनके संदेशों में शांति, प्रेम, सहयोग, और एकता की महत्वपूर्ण बातें हैं जो हमें अपने जीवन में अपनानी चाहिए।

क्रिया योग एक वैज्ञानिक कला है। यह वैज्ञानिक है, इसका अर्थ ये है कि अभ्यास करने पर यह सभी को एक जैसा फल देता है। यह कला है, इसका अर्थ ये है कि नियमितअभ्यास किया जाय तो यह और भी उत्तमतर होता जाता है, जैसा किसी कला या संगीत आदि के क्षेत्र में होता है।

क्रिया योग

"क्रिया में केवल एक ही गुरु है: बाबाजी नागराज, इसका जीवित स्रोत" – योगी एस.ए.ए. रमैया, 2 जनवरी, 2002

क्रिया – जाकरूकता के साथ कर्म करना।

योग – युज् धातु से बना है जिसका अर्थ है जुड़ना। 

किसका किससे जुड़ना? आत्मा का परमात्मा से जुड़ना या फिर हमारा परब्रह्म परमेश्वर के साथ एक हो जाना। जीवन का उद्देश्य तो यही है कि हम परब्रह्म परमेश्वर के साथ एक हो जाएँ।

अथ योगानुशासनम्॥ पतन्जलि योग सूत्र 1.1॥
अनुशासनम् = अनुशासन, पहले से स्थित शिक्षा;
अनुशासनम् = अनु + शासनम्;
अनु  = के अनुसार
शासनम् = शासन (वेद का)
1. अब योग का अनुशासन।
2. अब (वेद के अनुसार) योग करें।

योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः॥पतन्जलि योग सूत्र 1.2॥
चेतना में उत्पन्न होने वाली अस्थिरता का अन्त ही योग है। 1.2॥

तदा द्रष्टुः स्वरूपेऽवस्थानम्॥पतन्जलि योग सूत्र 1.3॥
तब द्रष्टा अपने स्वभाव (सत्य स्वरूप) में स्थित रहता है। ॥1.3॥

दुःख का कारण

यदि हम अपने सत्य स्वरूप में स्थित नहीं होते हैं तो हम अपनी स्वभाविक स्थिति से दूर हो जाते हैं। हम विभिन्न वृत्तियों और क्लेशों के कारण दुःखी होते हैं।

वृत्तिसारूप्यमितरत्र॥पतन्जलि योग सूत्र 1.4॥
अन्यथा वह वृत्तियों के समान स्वरूप का (संबंध स्थापित करता) है। ॥1.4॥

और फिर व्यक्ति इन वृत्तियों में उलझ जाता है  –

प्रमाणविपर्ययविकल्पनिद्रास्मृतयः॥पतन्जलि योग सूत्र 1.6॥
सम्यक संज्ञान (प्रमाण), गलत संज्ञान (विपर्यय), कल्पना (विकल्प), निद्रा और स्मृति (पाँच वृत्तियाँ हैं)॥1.6॥

अविद्यास्मितारागद्वेषाभिनिवेशाः क्लेशाः॥पतन्जलि योग सूत्र 2.3॥
पाँच क्लेश हैं अज्ञानता, अहंकार, राग, द्वेष और जीवन से चिपके रहने की इच्छा॥2.3॥


अनुशासन – दुःख का समाधान

वृत्तियों और क्लेशों के समाधान के लिए योग अत्यन्त प्रभावी है। महर्षि पतंजलि कहते हैं – 

तपः स्वाध्यायेश्वरप्रणिधानानि क्रियायोग: ॥पतन्जलि योग सूत्र 2.1॥
तप (गहन अभ्यास), पवित्र ग्रंथों का अध्ययन, और भगवान के प्रति कर्म का समर्पण क्रिया योग (क्रिया - जागरूकता के साथ कर्म, योग - परमात्मा से मिलन) के अंग हैं।

तप

गहन अभ्यास का नाम तप है।

अभ्यासवैराग्याभ्यां तन्निरोधः॥पतन्जलि योग सूत्र 1.12॥
उनका (वृत्तियों का) आध्यात्मिक अभ्यास (अभ्यास) और अनासक्ति (वैराग्य) द्वारा निरोध होता है॥1.12॥

स्वाध्याय

स्वाध्यायाद् इष्टदेवतासंप्रयोगः॥पतन्जलि योग सूत्र 2.44॥
स्वाध्याय से परम आकांक्षी स्वरूप में ईश्वर के साथ एकत्व होता है।

ईश्वरप्राणिधान

ईश्वरप्रणिधानाद्वा॥पतन्जलि योग सूत्र 1.23॥
या भगवान के प्रति समर्पण से (समाधि प्राप्त होती है)॥1.23॥

समाधिसिद्धिरीश्वरप्रणिधानात्॥पतन्जलि योग सूत्र 2.45॥
सभी कार्यों (के उद्देश्य) को भगवान (ईश्वर प्राणिधान) को समर्पित करने से बोध (समाधि) प्राप्त होता है।

क्रिया योग का सिद्धांत – पंचांग पथ

बाबाजी के क्रिया योग के पाँच अंग हैं। क्रिया योग भौतिक, प्राणिक, मानसिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक स्तर पर की जाने वाली साधना है। 

  • भौतिक: अन्नमय कोष के विकास के लिए क्रिया हठ आसन हैं।
  • प्राणिक: प्राणमय कोष  के विकास के लिए क्रिया कुण्डलिनी प्राणायाम है। 
  • मानसिक: मनोमय कोष  के विकास के लिए क्रिया ध्यान है। 
  • बौद्धिक: विज्ञानमय कोष  के विकास के लिए क्रिया मन्त्र जप है। 
  • आध्यात्मिक: आनंदमय कोष के विकास के लिए क्रिया भक्ति है।

पन्च कोष

  • अन्नमय कोष: यह सबसे बाहरी कोश है और शारीरिक आहार से संबंधित होती है। इस कोश में भोजन और शरीर के शोध-पचान प्रक्रियाएं शामिल होती हैं।
  • प्राणमय कोष: इस कोश में प्राण शक्ति, वायु और शरीर के ऊर्जा के प्रवाह से संबंधित होता है। यह कोश प्राणायाम, प्राणिक शक्ति और प्राणयाम की गतिविधियों को नियंत्रित करता है।
  • मनोमय कोष: यह मन, भावनाएं, मनोवृत्तियाँ और भावनात्मक अनुभवों से संबंधित होता है। इस कोश में मन की विभिन्न स्तरों के अनुभव, संवेदना और भावनाएं शामिल होती हैं।
  • विज्ञानमय कोष: यह ज्ञान, विचार, बुद्धि और अनुभवों से संबंधित होता है। इस कोश में ज्ञान की प्राप्ति, विचारधारा और ज्ञान के विभिन्न प्रकार शामिल होते हैं।
  • आनंदमय कोष: यह सबसे आंतरिक कोश है और आनंद, खुशी, शांति और आनंदमय अनुभवों से संबंधित होता है। इस कोश में आनंदमयता, आत्मानुभूति और आध्यात्मिक उन्नति शामिल होती है।

क्रिया योग साधना का विभिन्न स्तरों पर असर पड़ता है, जो साधक को उसके सच्चे स्वरुप की याद दिलाती है।क्रिया योग द्वारा साधक में शक्ति, स्वास्थ्य, संतुलन और शांति का विकास होता है। क्रिया योग द्वारा साधक अपनी चेतना को विकसित करता है। साधक अपनी चेतना का विस्तार करके और प्रखर बुद्धि के साथ हर कार्य संपन्न कर सकता है। 

साधक को शरीर और मन की गतिविधियों से अपने अहं की पहचान छोड़कर शुद्ध साक्षी भाव में स्थित होना होता है। यह साधना साधक को उसके सच्चे स्वरूप की याद दिलाती है और उसे शुद्ध साक्षी भाव में स्थित करती है। 

यह साधक की कुण्डलिनी को जाग्रत करता है और चेतना के विकास के लिए आवश्यक होता है। क्रिया योग की तकनीकें अन्तःप्रज्ञा और रोग निवारण की शक्ति को सुदृढ़ करती हैं। यह स्वतः सुधारात्मक (self-correcting) है। यह हमारी साधना में त्रुटियों को स्वयं सुधारने की क्षमता रखता है।

क्रिया हठ आसन

  • आसन के अभ्यास अच्छे शारीरिक स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है और मानसिक शांति एवं स्थिरता प्राप्त होती है।
  • आसन करने से शरीर, मन और आत्मा के बीच संतुलन स्थापित होता है और सामर्थ्य और शक्ति का विकास होता है।
  • आसन द्वारा शरीर की ऊर्जा को शुद्ध किया जा सकता है, जिससे आत्मा के प्रति अधिक जागरूकता विकसित होती है।
  • नियमित आसन के अभ्यास से मनोवैज्ञानिक लाभ प्राप्त होता है, जैसे कि ध्यान और चित्त शांति में सुगमता।
  • आसन के माध्यम से अपने शरीर की सीमाओं को पार किया जा सकता है और आध्यात्मिक अनुभवों का अनुभव कर सकते हैं।
  • आसन के अभ्यास से प्राणिक शक्ति की वृद्धि होती है, जो शरीर और मन के संतुलित रहने में मदद करती है।

क्रिया कुण्डलिनी प्राणायाम

  • कुण्डलिनी प्राणायाम द्वारा आत्मा की ऊर्जा को जागृत किया जा सकता है, जो आत्मिक अनुभवों को प्राप्त करने में सहायता करती है।
  • कुण्डलिनी प्राणायाम से चेतना की ऊर्जा का संतुलन होता है और आध्यात्मिक उन्नति होती है।
  • यह प्राण, मन और शरीर के बीच संतुलन स्थापित करता है और संयम की क्षमता को विकसित करता है।
  • धीमी और लम्बी श्वास की गति के साथ-साथ मन को शांति और स्थिरता की अवस्था में लाने में सहायता करता है।
  • कुण्डलिनी प्राणायाम से आत्मा की गहराई का अनुभव होता है और अनंत सत्य की ओर प्राप्ति होती है।

क्रिया ध्यान योग

  • ध्यान करने से मन का विचरण स्वस्थ होता है, मानसिक तनाव और चिंता कम होती है और तन-मन की समता प्राप्त होती है।
  • ध्यान के माध्यम से स्वयं को आत्मा के साथ जोड़ने का अनुभव होता है।
  • ध्यान से चित्त की प्रशांति होती है और उच्च स्थिति की प्राप्ति होती है।
  • ध्यान से स्वयं की पहचान बढ़ती है, आत्मा की प्राप्ति होती है और आनंद की अनुभूति होती है।
  • ध्यान से विचार और नीति में स्थिरता प्राप्त होती है और मानवीय गुणों का विकास होता है।

क्रिया मन्त्र योग

  • मन्त्र चेतना के विभिन्न स्तरों के बीच जुड़ने का साधन है।
  • मन्त्र की ध्वनि और उच्चारण के साथ उसके अर्थ या संकेत पर ध्यान लगाना चाहिए।
  • मंत्र का अभ्यास करते समय चैतन्य प्रभु या गुरु के स्वरूप का स्मरण रखने से लाभ प्राप्त होता है।
  • मंत्रों के अभ्यास से संयम और समर्पण का प्रादुर्भाव होता है।
  • मंत्र जाप से मन की विक्षेपों को नियंत्रित करने और चित्त के विचरणों से अलग करने की योग्यता बढ़ती है।
  • यह चित्त को उन्नत करके आत्मिक अनुभव की गहराई को बढ़ाता है।

आप चाहें तो इस मन्त्र का जाप कर सकते हैं - ॐ क्रिया बाबाजी नम ॐ

क्रिया भक्ति योग

  • भक्ति के अभ्यास से मन शांत होता है और स्थिरता को प्राप्त करता है।
  • भक्ति के माध्यम से हम अपने अंतर्मन की शुद्धि करते हैं।
  • भक्ति द्वारा हम अपने आत्मा के साथ एकात्म होते हैं।
  • भक्ति आपकी चिंताओं और आशाओं को दूर करने में सहायता करती है।
  • भक्ति अनंत आनंद और आत्मिक समृद्धि का अनुभव करने में सहायता करती है।
  • भक्ति के माध्यम से हम दया, करुणा और प्रेम की ऊर्जा को विकसित करते हैं।

आप चाहें तो इस मन्त्र को गा कर भजन भी कर सकते हैं - ॐ क्रिया बाबाजी नम ॐ

दैनिक जीवन में क्रिया योग को सम्मिलित करें।

क्रिया योग को अपनी दैनिक जीवनशैली में सम्मिलित करने के बारे में व्यावहारिक सुझाव और मार्गदर्शन प्रदान करूंगा। साथ ही, हम ज्यादा लाभ प्राप्त करने के लिए नियमित अभ्यास और लगातार साधना की महत्वपूर्णता पर जोर देना चाहिए। यह एक व्यावहारिक योग प्रणाली है जो हमें स्वास्थ्य, सुख, शांति और आत्मानुभूति का अनुभव करने के लिए तैयार करती है। क्रिया योग में विभिन्न शारीरिक और मानसिक क्रियाओं का अभ्यास किया जाता है जिनसे हम अपने जीवन को एक समर्थ और उत्कृष्ट स्थिति में रख सकते हैं।

पहला सुझाव है, सबेरे उठते ही क्रिया योग का अभ्यास शुरू करें। अपने दिन की शुरुआत क्रिया योग से करने से हम अपने मन को शांति देते हैं और दिनभर तनाव को कम करने में सहायता मिलती है। दौड़-भाग के बीच कुछ समय निकालकर क्रिया योग का अभ्यास करने से हमारा दिन सकारात्मकता से शुरू होता है और हमें शक्ति प्राप्त होती है।

दूसरा सुझाव है, नियमितता को बनाए रखें। क्रिया योग का अभ्यास एक दिन या दो दिन के लिए करने से अच्छा होता है, लेकिन यदि हम इसे नियमित रूप से अपनी दैनिक जीवनशैली में शामिल करते हैं, तो हम इसके अधिक लाभ उठा सकते हैं। अपने समय को अभ्यास के लिए निर्धारित करें और उसका निष्ठा से पालन करें। इससे हमारा मन और शरीर इसे स्वीकार करने लगेंगे और यह हमारे जीवन का एक आवश्यक हिस्सा बन जाएगा। हमें स्थिरता और संयम से इसे अभ्यास करना चाहिए, जिससे हमारा अभ्यास स्थायी हो जाएगा और हमें उसके साथ गहरा जुड़ाव महसूस होगा।

तीसरा सुझाव है, अपने अभ्यास के लिए एक स्वच्छ स्थान चुनें। एक स्थिर और शांतिपूर्ण माहौल में अभ्यास करने से हम अपने मन को ध्यान में ज्यादा लगा सकते हैं। यदि हम एक समूह में योग का अभ्यास करते हैं, तो हमें अच्छी संगति का अनुभव मिलता है और हम एक-दूसरे से प्रेरणा और सहयोग प्राप्त कर सकते हैं।

चौथा सुझाव है, क्रिया योग के विभिन्न तत्वों को अपनी दैनिक जीवनशैली में शामिल करें। यदि हम आसन, प्राणायाम, ध्यान, मन्त्र जाप और भक्ति को अपनी दैनिक जीवनशैली में शामिल करते हैं, तो हम अपने शरीर, मन और आत्मा की एकीकृतता को स्थापित करते हैं। हमारे शरीर को स्वस्थ और चुस्त रखने के लिए आसन अभ्यास करना महत्वपूर्ण है। मन्त्र जाप हमारे मन को शांति और उत्तेजना से पूर्ण करता है और ध्यान हमें आत्मिक विकास और आत्मसाक्षात्कार में मदद करता है।

क्रिया योग हमें शांति, स्वास्थ्य और आनंद का एक नया साधन प्रदान करता है। हमारे जीवन को उच्चतम स्थान पर ले जाने के लिए हमें क्रिया योग को नियमित और निष्ठापूर्वक अपनी दैनिक जीवनशैली में शामिल करना चाहिए।

निष्कर्ष एवं आमंत्रण

क्रिया योग एक अद्वितीय योग पद्धति है जो हमें मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक स्तर पर संतुलन और स्वास्थ्य प्रदान करती है। महावतार बाबाजी की शिक्षाएँ हमारे जीवन में आनंद, समृद्धि, शांति और पूर्णता को स्थापित करने का मार्ग दिखाती हैं।

यदि कोई व्यक्ति या सभी आप में से कोई भी व्यक्ति, इस क्रिया योग के आध्यात्मिक यात्रा को और आगे बढ़ाने की इच्छा रखता है, तो मैं आपको आमंत्रित करता हूँ कि आप इसका और गहराई से अध्ययन करें। बाबाजी का क्रिया योग ट्रस्ट योगशालाओं, कक्षाओं और व्यक्तिगत मार्गदर्शन के माध्यम से आपको क्रिया योग का अध्ययन करने का अवसर प्रदान कर सकते हैं।

क्रिया योग एक अनुभव है, जिसे शब्दों में समझाया नहीं जा सकता है, लेकिन जब हम इसे अनुभव करते हैं तो हमारा जीवन परिवर्तित होता है। इसलिए, मेरा आपसे अनुरोध है कि आप इस अद्वितीय योग पद्धति के द्वारा आध्यात्मिक यात्रा आरम्भ करें और इसे अपने जीवन में सम्मिलित करें। 

हम अपनी योग साधना के अद्वितीय पथ पर आगे बढ़ें और एक दूसरे के साथ साझा करें। एकजुट होकर, हम समर्पित आध्यात्मिक साधना में अग्रसर हो सकते हैं और अपने जीवन को आनंदमय बना सकते हैं। अध्यात्म और स्वाध्याय सबसे बड़ा उपहार है जो हम स्वयं को और दूसरों को दे सकते हैं। आइए हम सभी मिलकर आध्यात्मिक उत्थान की प्रक्रिया में आगे बढ़ें और दुनिया में आनंद, शांति और प्रेम की अवधारणा को फैलाएँ क्योंकि सच्ची उन्नति और आनंद का स्रोत हमारे अन्दर ही है। 

धन्यवाद, आभार, और शुभकामनाएं! 

ॐ शांतिः, शांतिः, शांतिः

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